Thursday, February 12, 2009

प्रेम (४)

फूलों के रंग
हवा में उड़ रहे हैं
टहल रही है
भीगी घास पर
नंगे पाँव ख़ुश्बू।

आओ!
स्वागत है, पर
चुपचाप।

शब्दों का घर है मेरा
और एक नटखट बच्ची
अभी-अभी सोई है
नींद के पेड़ के नीचे!

1 comment:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अरे वाह, बहुत खूब।

चिराग जी, हरिमोहन जी की इन सुंदर रचनाओं को पढवाने का शुक्रिया।