Thursday, February 12, 2009

प्रेम (३)

नींद चली गई है
खिड़की के रास्ते
कहीं;
ढूंढने चली गई हैं ऑंखें
नींद कों

और मैं
प्रतीक्षा कर रहा हूँ;
दोनों की!

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